Brahmand ki suruaat ( Starting of universe )


***welcome**to**the**universe***

      Ap sab ka swaagat hai

Isme ap janenge brahmand ke baare me





         ***प्रारंभिक स्वरूप***


आज से 14 अरब वर्ष पूर्व ब्रह्मांड का कोई अस्तित्व नहीं था। पूरा 

ब्रह्मांड एक छोटे से अति सघन बिंदु में सिमटा हुआ था। अचानक

 एक जबर्दस्त विस्फोट - बिग बैंग (Big Bang) हुआ और ब्रह्मांड

अस्तित्व में आया। महाविस्फोट के प्रारंभिक क्षणों में आदि पदार्थ

 (Proto matter) व प्रकाश का मिला-जुला गर्म लावा तेजी से

 चारों तरफ बिखरने लगा।  कुछ ही क्षणों मेंब्रह्मांडव्यापक हो 

गया। लगभग चार लाख साल बाद फैलने की गति धीरे-धीरे कुछ

 धीमी हुई। ब्रह्मांड थोड़ा ठंडा व विरल हुआ और प्रकाश बिना 

पदार्थ से टकराये बेरोकटोक लम्बी दूरी तय करने लगा और 

ब्रह्मांड प्रकाशमान होने लगा। तब से आज तकब्रह्मांडहजार गुना

 अधिक विस्तार ले चुका है।



        ***ब्रह्मांड का व्यापक स्वरूप***


आकाशगंगाओं में केवल अरबों-खरबों तारे ही नहीं बल्कि धूल व

 गैस के विशाल बादल बिखरे पड़े हैं। सैकड़ों प्रकाशवर्ष दूर तक 

फैले इन बादलों में लाखों- तारों के पदार्थ सिमटे हुए हैं। इन्हें

 निहारिकाएँ (nebule) कहते हैं। ये सैकड़ों भ्रूण तारों को अपने 

गर्भ में समेटे रहती हैं। हमारी अपनी आकाशगंगा में भी हजारों

 निहारिकाएं हैं, जिनसे हर पल सैकड़ों तारे पैदा होते हैं। तारों  की 

भी एक निश्चित आयु होती हैै। सूर्य जैसे मध्यम आकार के तारों

 की जीवन यात्रा लगभग 10 अरब वर्ष लम्बी है। सूर्य के आधे 

आकार के तारों की उम्र इससे भी दुगुनी होती है। पर भारी-भरकम

 तारों की जीवन-लीला कुछ करोड़ वर्षों में ही समाप्त हो जाती है।

 तारों का अंत सुपरनोवा विस्फोट के रूप में होता है। 



   ***आधुनिक खगोलशास्त्र का उदय***


सन् 1929 में एडविन हब्बल और मिल्टन हुमासान  ने एक

 महत्वपूर्ण खोज की। उन्होंने पाया कि दूरस्थ आकाशगंगाओं के

 प्रकाश में विशेष रहस्य छिपे हैं। हब्बल व हुमासान ने

 आकाशगंगाओं की दूरी और इनकी गति का तुलनात्मक

 अध्ययन किया। जिससे पता चला कि सुदूर अंतरिक्ष में बिखरी

 पड़ी अनगिनत आकाशगंगाएँ हमसे जितनी दूर हैं उतनी ही

 अधिक तेजी से वह और दूर भाग रही हैं। इस खोज ने यह स्पष्टï

 कर दिया कि हमारी आकाशगंगा से परे न सिर्फ पूरा ब्रह्मïांड

 व्यापक जाँच-पड़ताल की प्रतीक्षा में है बल्कि यह लगातार फैलता

 जा रहा है। इस खोज ने ब्रह्मïांड की उत्पत्ति की जड़ तक

 पहुँचने में सफलता दिलाई और यह तथ्य उभरकर सामने आया

 कि पूरा का पूरा ब्रह्मïांड कभी एक अति सघन छोटे से बिंदु में

 सिमटा हुआ था। इसकी महाविस्फोट से शुरुआत हुई और तभी

 से यह लगातार फैलता जा रहा है। नजदीकी तारों का प्रकाश कुछ

  वर्षों में हम तक पहुँचता है और दूरस्थ आकाशगंगाओं का प्रकाश

 हम तक पहुँचने में अरबों साल लग सकते हैं। हम आकाशगंगाओं

 का जो दृश्य देखते हैं वह करोड़ों-अरबों साल पहले का होता है

 क्योंकि प्रकाश इतने ही वर्षों में हम तक पहुँचता है। इस लंबी दूरी

 को व्यक्त करने के लिए प्रकाश वर्ष एक प्रचलित पैमाना है। 





       ***अंतरिक्षीय विकिरण***




अंतरिक्षीय विकिरण के रूप में एक महत्वपूर्ण खोज सन् 1964 में 



विल्सन व पेनजिऑस द्वारा की गई जिसने ब्रह्मïांड को 



खंगालने की एक नई विधा हमारे हाथ में पकड़ा दी। विकिरण की


 सर्वव्यापकता व निरंतरता इस बात की गवाह है कि 

आकाशगंगाओं, इनके झुण्डों और ग्रहों आदि जैसी संरचना

 निर्मित होने के भी बहुत पहले अतीत काल से ही विकिरण चला

 आ रहा है। इस सहज प्रवाह के कारण हम विकिरण के गुणों की

 प्रामाणिक पहचान कर सकते हैं। इस कार्य को ठीक से करने के

 लिए सन् 1989 में पृथ्वी की कक्षा में एक कॉस्मिक बैकग्राउंड

 एक्सप्लोरर उपग्रह भेजा गया। यह प्रारंभिक ब्रह्मïांड द्वारा

 उत्सर्जन का परीक्षण करने में सफल रहा।ब्रह्मांड का लगातार

 प्रसार हो रहा है और शुरुआती समय की अपेक्षा यह विकिरण

 सतरंगी पट्टी के सूक्ष्म तरंगीय हिस्से में दिखाई देने वाले 

तरंगदैध्र्य के परे लाल रंग की तरफ झुका था। विल्सन व 

पेनजिऑस द्वारा अन्वेषित सूक्ष्म तरंगीय आकाश हमारी अपनी

 आकाशगंगा के स्तर को छोड़कर पूरी तरह शांत था। लेकिन इस

 स्तर के ऊपर व नीचे के विकिरण में कोई उतार-चढ़ाव नहीं था।

 कॉस्मिक बैकग्राउंड एक्सप्लोरर यानि कोबे (ष्टह्रक्चश्व) उपग्रह

 ने बहुत हल्का उतार-चढ़ाव दर्ज किया है। फिर भी सूक्ष्म तरंगीय

 विकिरण हलचल मुक्त ही है। यह उतार-चढ़ाव- एक लाख में एक

 भाग-बिग बैंग के लगभग चार लाख साल बाद प्रारंभिक 

ब्रह्मïांड के तापमान में हुए बदलाव का प्रभाव है। सन् 2001 में 

कोबे से 100 गुना अधिक संवेदनशील उपग्रह के सहारे वैज्ञानिकों

 ने अधिक आँकड़ों को समेटे एक सूक्ष्म तरंगीय आसमान का 

मानचित्र तैयार किया। इसमें भी बहुत हल्का उतार-चढ़ाव पाया 

गया, जो नवजात ब्रह्मांड में पदार्थों के इकट्ठे होने की ओर संकेत 

करता है। अरबों साल में ये पदार्थ सघन हुए  और गुरुत्व बल के

 प्रभाव से चारों तरफ के अधिकाधिक पदार्थों को अपनी ओर 

खींचने लगे। यह प्रक्रिया आगे बढ़ते हुए आकाशगंगाओं तक जा

 पहुँची। नजदीकी आकाशगंगाओं के समूह से अन्तहीन जाल 

जैसी संरचनाएं बन गई। यह बीज ब्रह्मांड के जन्म के समय ही

 पड़ा और काल के प्रवाह में अरबों-खरबों आकाशगंगाओं  का 

वटवृक्ष खड़ा हुआ जिन्हें आज हम देख रहे हैं। उपग्रहीय अवलोकन

 ने कुछ और अज्ञात, अनजाने तथ्यों के साथ-साथ अदृश्य पदार्थ

 के अस्तित्व को भी प्रमाणित किया।


        ***ब्रह्मांड का भविष्य***



ब्रह्मांड का आने वाले समय में क्या भविष्य क्या है, सबसे 

महत्वपूर्ण प्रश्न है? क्या अनंत ब्रह्म्ïाांड अनंतकाल तक विस्तार

 लेता ही जाएगा? सैद्धांतिक दृष्टिï से इस बारे में तीन तस्वीरें

 उभरती हैं। सुदूर में अदृश्य व दृश्य पदार्थ के वर्चस्व मे गुरुत्व बल

 भारी पड़ा और ब्रह्मांड के फैलने की गति धीमी हुई। ब्रह्मांड के

 बढ़ते आकार में धीरे-धीरे पदार्थों की ताकत घटने लगी और 

अदृश्य ऊर्जा रूपी विकर्षण शक्ति अपना प्रभाव जमाने लगी।

 फलत: ब्रह्मांड के फैलने की दर तेज हुई। अगले 100 अरब साल

 तक यदि यह दर स्थिर भी रहे तो बहुत सी आकाशगंगाओं का

 अंतिम प्रकाश भी हम तक नहीं पहुँच पाएगा। अदृश्य ऊर्जा का

 प्रभुत्व बढऩे पर फैलने की दर तेज होती हुई आकाशगंगाओं, सौर

 परिवार, ग्रहों, हमारी पृथ्वी और इसी क्रम में अणुओं के नाभिक

  तक को 'नष्टï-भ्रष्टïÓ कर देगी। इसके बाद क्या होगा इसकी

 कल्पना करना भी मुश्किल है। लेकिन यदि अदृश्य ऊर्जा के पतन

 से पदार्थों का साम्राज्य पुन: स्थापित होता है यानि पदार्थ सघन

 होकर गुरुत्वीय प्रभाव को और अधिक बलशाली बना देते हैं तो

 दूरस्थ आकाशगंगाएँ भी हमें आसानी से नजर आने लगेंगी। यदि

 अदृश्य ऊर्जा ऋणात्मक हो जाती है तो ब्रह्मïांंड पहले धीरे-धीरे

 और फिर तेजी से अपने आदिस्वरूप के छोटे बिंदु में सिमटने के

 लिए विवश होगा। निर्वात भौतिकी या शून्यता ब्रह्मïांंड का 

भविष्य निश्चित करेगी। अमेरिकी ऊर्जा विभाग और नासा ने

 मिलकर अंतरिक्ष आधारित एक अति महत्वकांक्षी परियोजना

 'ज्वाइंट डार्क एनर्जी मिशनÓ का प्रस्ताव रक्खा है। अगले दशक 

में पूर्ण होने वाली इस परियोजना में दो मीटर व्यास की एक

 अंतरिक्षीय दूरबीन स्थापित की जानी है। यूरोपीय स्पेस एजेंसी ने

 भी 2007 में प्लांक अंतरिक्ष यान प्रक्षेपित किया है। यह अंतरिक्ष

 यान प्रारम्भिक अंतरिक्षीय विकिरण का अध्ययन अधिक गहराई

 और सूक्ष्मता से कर सकता है।



          ***आकाशगंगा (universe)***


आकाशगंगाएँ तारों का विशाल पुंज होती हैं, जिनमें अरबों तारे 

होते हैं। आकाशगंगाओं का निर्माण शायद 'महाविस्फोटÓ के 1 

अरब वर्ष पश्चात् हुआ होगा। खगोलशास्त्री भी आकाशगंगाओं की

 कुल सँख्या का अनुमान नहीं लगा सके हैं। आकाशगंगाएँ इतनी

 विशाल होती हैं कि उन्हें 'द्विपीय ब्रह्मïांडÓ (ढ्ढह्यद्यड्डठ्ठस्र

 ठ्ठद्ब1द्गह्म्ह्यद्ग) भी कहते हैं। आकाशगंगाएँ मुख्यत: तीन

 आकारों- सर्पिल (स्श्चद्बह्म्ड्डद्य), दीर्घवृत्तीय 

(श्वद्यद्यद्बश्चह्लद्बष्ड्डद्य) और अनियमित 

(ढ्ढह्म्ह्म्द्गद्दह्वद्यड्डह्म्) होती हैं। हमारी आकाशगंगा 'मिल्की

 वेÓ सर्पिल आकार की है। आकाशगंगाएँ अक्सर समूहों में

 ब्रह्मïांड की परिक्रमा करती हैं। हमारी आकाशगंगा 'मिल्की वेÓ

 20 आकाशगंगाओं के समूह की सदस्य है। कुछ आकाशगंगाओं

 के समूह में हजारों आकाशगंगाएँ शामिल होतीहैं।




         ***'मिल्की वे' आकाशगंगा***


हमारी आकाशगंगा का नाम 'मिल्की वेÓ है। इसमें लगभग 100 

अरब तारे शामिल हैं। हमारा सौरमंडल और सूर्य 'मिल्की वेÓ के 

केंद्र के किनारे से आधी दूरी पर स्थित है। 'मिल्की वेÓ के एक 

सिरे से दूसरे सिरे तक यात्रा करने में प्रकाश को 100,000 वर्ष

 लगते हैं। 'मिल्की वेÓ ब्रह्मïांड की परिक्रमा करती है। सूर्य को 

'मिल्की वेÓ के केंद्र की परिक्रमा करने में 22.5 करोड़ वर्ष का 

समय लगता है, जिसे आकाशगंगीय वर्ष (त्रड्डद्यड्डष्ह्लद्बष्

 ङ्घद्गड्डह्म्) कहते हैं।




            ***तारे  (star)***



तारे विशाल चमकदार गैसों के पिण्ड होते हैं जो स्वयँ के

 गुरूत्वाकर्षण बल से बंधे होते हैं। भार के अनुपात में तारों में 70 

प्रतिशत हाइड्रोजन, 28 प्रतिशत हीलियम, 1.5 प्रतिशत कार्बन

, नाइट्रोजन व ऑक्सीजन तथा 0.5 प्रतिशत लौह तथा अन्य भारी

 तत्व होते हैं। ब्रह्मïांड का अधिकाँश द्रव्यमान तारों के रूप में ही

 है। तारों का जन्म समूहों में होता है। गैस व धूल के बादल जिन्हें

 अभ्रिका (हृद्गड्ढह्वद्यड्ड) कहते हैं, जब लाखों वर्ष पश्चात् छोटे

 बादलों में टूटकर विभाजित हो जाते हैं तब अपने ही गुरूत्वाकर्षण

 बल से आपस में जुड़कर तारों का निर्माण करते हैं। तारों की 

ऊष्मा हाइड्रोजन को एक अन्य गैस हीलियम में परिवर्तित कर 

देती है। इस परिवर्तन के साथ ही 'नाभिकीय संलयनÓ 

(हृह्वष्द्यद्गड्डह्म् द्घह्वह्यद्बशठ्ठ) की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती

 है, जिससे अत्यन्त उच्चस्तरीय ऊर्जा उत्पन्न होती है। इसी ऊर्जा

 के स्रोत से तारे चमकते हैं।ब्रह्मïांड के लगभग 50 प्रतिशत तारे

 युग्म में पाए जाते हैं। उन्हें 'युग्म तारेÓ (क्चद्बठ्ठड्डह्म्4 

स्ह्लड्डह्म्ह्य) के नाम से जाना जाता है। जब किसी तारे का 

हाइड्रोजन ईंधन चुकने लगता है तो उसका अंतकाल नजदीक आ 

जाता है। तारे के बाह्य क्षेत्र का फूलना और उसका लाल होना 

उसकी वृद्धावस्था का प्रथम संकेत होता है। इस तरह के बूढ़े तथा

 फूले तारे को 'रक्त दानवÓ (क्रद्गस्र त्रद्बड्डठ्ठह्ल) कहते हैं।

 अपना सूर्य जो कि मध्यम आयु का तारा है, संभवत: 5 अरब वर्ष

 बाद 'रक्त दानवÓ में परिवर्तित हो जाएगा।  जब ऐसे तारे का

 सारा ईंधन समाप्त हो जाता है तो वह अपने केंद्र में पर्याप्त दबाव

 नहीं उत्पन्न कर पाता, जिससे वह अपने गुरूत्वाकर्षण बल को

 सम्भाल नहीं सकता है। तारा अपने भार के बल की वजह से छोटा

 होने लगता है। यदि यह छोटा तारा है तो वह श्वेत विवर 

(ङ्खद्धद्बह्लद्ग ष्ठ2ड्डह्म्द्घ) में परिवर्तित हो जाता है। 

खगोलशास्त्रियों के अनुसार सूर्य भी 5 अरब वर्ष पश्चात् एक श्वेत 

विवर में परिवर्तित हो जाएगा। किंतु बड़े तारे में एक जबर्दस्त

 विस्फोट (स्ह्वश्चद्गह्म्ठ्ठश1ड्ड) होता है और उसका पदार्थ

 ब्रह्मïांड में फैल जाता है।



                ***सौर मण्डल***


सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने वाले ग्रहों, उपग्रहों, धूमकेतुओं, 

क्षुद्रग्रहों तथा अन्य अनेक आकाशीय पिण्डों के समूह या परिवार

 को सौरमण्डल कहते हैं। कोई भी ग्रह एक विशाल, ठंडा खगोलीय 

पिण्ड होता है जो एकनिश्चित कक्षा में अपने सूर्य की परिक्रमा 

करता है। सूर्य हमारे सौरमण्डल का केंद्र है, जिसके चारों ओर ग्रह-

 बुध, शुक्र, मंगल, पृथ्वी, बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेप्च्यून 

चक्कर लगाते हैं। अधिकतर ग्रहों के उपग्रह भी होते हैं जो अपने 

ग्रहों की परिक्रमा करते हैं। 24 august 2006 ko प्लूटो से ग्रह का दर्जा छीन 

लिया गया था, जिसकी वजह से अब हमारे सौर मण्डल में मात्र 8

 ही ग्रह रह गये हैं। हमारे सौरमण्डल के ग्रहों का विभाजन 

आंतरिक ग्रहों और बाह्य ग्रहों के रूप में किया गया है। आंतरिक 

ग्रह (ञ्जद्गह्म्ह्म्द्गह्यह्लद्गह्म्द्बड्डद्य) हैं- बुध, शुक्र, पृथ्वी

 और मंगल। आंतरिक ग्रहों का निर्माण धात्विक तत्वों एवँ कठोर

 पाषाणों से हुआ है। इन ग्रहों का घनत्व अत्यन्त उच्च होता है।

 इसमें पृथ्वी सबसे बड़ा ग्रह है। बाह्य (ह्रह्वह्लद्गह्म्) ग्रह-

बृहस्पति, शनि, यूरेनस और नेप्च्यून अत्यन्त विशाल हैं। इनका 

निर्माण प्राय: हाइड्र्रोजन व हीलियम गैसों से हुआ है। ये सभी ग्रह

 अत्यन्त द्रुतगति से घूमते हैं।






                    *बुध (mercury)*


बुध सौरमंडल का सबसे छोटा ग्रह है।  यह भी एक तथ्य है कि बुध

 के तापमान में काफी विविधता रहती है। जहाँ इसके सूर्य

 प्रकाशित भाग का तापमान 450ष् होता है वहीं अंधेरे भाग का

 तापमान -1800ष् तक गिर जाता है। बुध, सूर्य की परिक्रमा 88 

दिनों में 30 मील/सेकेंड की रफ्तार से करता है। बुध के रात व दिन

 काफी लम्बे होते हैं। यह अपने अक्ष पर एक परिक्रमण 59 दिनों 


में पूरा करता है।





                  *शुक्र (Venus)*


शुक्रके वायुमंडल के मुख्य अवयव कार्बन डाईऑक्साइड और

 नाइट्रोजन हैं जो क्रमश: 95 एवं 2.5 प्रतिशत हैं। शुक्र के

 वायुमंडल का निर्माण घने बादलों से हुआ है। इन बादलों में 

सल्फ्यूरिक अम्ल एवँ जल के कण पाये जाते हैं। शुक्र के रात-दिन

 के तापमान में अंतर नहीं होता है। यह ग्रह सूर्य एवं चंद्रमा के बाद

 सौरमण्डल का सबसे चमकीला खगोलीय पिण्ड है।

यह 224.7 दिनों में सूर्य का एक परिक्रमण करता है। सोवियत

 अंतरिक्षयान 'बेनेरा 3Ó शुक्र की सतह पर उतरने वाला प्रथम

 मानव निर्मित उपग्रह बना। सन् 1989 में भेजे गए 'मैगेलानÓ

 नामक अंतरिक्षयान ने शुक्र पर 1600 ज्वालामुखियों का पता

 लगाया और यहाँ की ऊंची पहाडिय़ों के भी चित्र लिए।






                 *पृथ्वी (Earth)*


पृथ्वी के वायुमंडल का निर्माण 79 प्रतिशत नाइट्रोजन, 21

 प्रतिशत ऑक्सीजन, 1 प्रतिशत जल एवँ 0.3 प्रतिशत ऑर्गन से 

हुआ है। पृथ्वी, सूर्य से तीसरा ग्रह है और यह सौरमंडल का अकेला

 ऐसा ग्रह है, जहां जीवन की उपस्थिति है। अंतरिक्ष से देखने पर

 पृथ्वी नीले-सफेद रंग के गोले के रूप में दिखाई देती है। पृथ्वी की

 सूर्य से माध्य दूरी 9.3 करोड़ मील है। यह सूर्य की परिक्रमा

 67,000 मील प्रति घण्टे की रफ्तार से करती हुई एक परिक्रमा

 पूरी करने में 365 दिन, 5 घण्टे, 48 मिनट और 45.51 सेकेण्ड

 का समय लेती है। अपनी धुरी पर एक परिक्रमण 23 घण्टे, 56

 मिनट और 4.09 सेकेण्ड में पूरा करती है। पृथ्वी पूर्णतया

 गोलाकार नहीं है। इसका विषुवत रेखा पर व्यास 9,727 मील और

 ध्रुवों पर व्यास इससे कुछ कम है।
इसका अनुमानित द्रव्यमान 6.6 सेक्सटिलियन टन है एवँ औसत

 घनत्व 5.52 ग्राम प्रति घन सेमी. है। पृथ्वी का क्षेत्रफल 

196,949,970 मील है। जिसका 3/4 भाग जल है।

हाल की खोजों में वैज्ञानिकों को ज्ञात हुआ कि पृथ्वी का क्रोड 

पूर्णतया गोलाकार नहीं है। पृथ्वी के क्रोड के एक्स-रे चित्रों से ज्ञात

 होता है कि वहाँ 6.7 मील ऊँचे पर्वत एवँ इतनी ही गहरी घाटियाँ


 मौजूद हैं।






                 *मंगल (Mars)*


मंगल के वायुमंडल में 95 प्रतिशत कार्बन डाईऑक्साइड, 3 

प्रतिशत नाइट्रोजन, 2 प्रतिशत ऑर्गन गैस पाई जाती हैं। मिट्टी में

 आयरन ऑक्साइड होने की वजह से यह ग्रह लाल रंग का दिखाई

 देता है।मंगल का एक दिन 24 घण्टे 37 मिनट के बराबर होता है।

 यह पृथ्वी के एक दिन के लगभग बराबर है। किंतु इसका एक वर्ष

 लगभग 686 दिनों का होता है। मंगल अत्यन्त ठंडा ग्रह है 

जिसका औसत तापमान -90ष् से -230ष् तक होता है। मंगल का 

वायुमंडल अत्यन्त विरल है। मंगल पर अक्सर धूल भरी आंधियाँ

 चलती हैं। मंगल ग्रह का सबसे विस्मयकारी तथ्य है कि यहाँ 

कभी महासागर स्थित थे और यहां का  वायुमंडल काफी घना था।

 इस वायुमंडल की उपस्थिति का कारण ज्वालामुखियों से 

निकलने वाली गैसें रही होंगी। इस वायुमण्डल के कारण इसकी 

सतह पर जल उपस्थित रहा होगा। अंतरिक्षयान 'पाथफाइंडरÓ

 द्वारा भेजे गए चित्रों से ज्ञात हुआ है कि करोड़ों वर्ष पूर्व मंगल पर

 जल अत्याधिक मात्रा में पाया जाता था। नासा के 'मार्स ग्लोबल

 सर्वेयरÓ ने मंगल की विषुवत रेखा के निकट प्राचीन पनतापीय

 प्रणाली (द्ध4स्रह्म्शह्लद्धद्गह्म्द्वड्डद्य स्4ह्यह्लद्गद्व) के

 स्पष्टï प्रमाण प्रस्तुत किए हैं।






              *बृहस्पति (jupiter)*


बृहस्पति के वायुमंडल का निर्माण 89 प्रतिशत आणविक 

हाइड्रोजन और 11 प्रतिशत हीलियम से हुआ है। बृहस्पति 

सौरमंडल का सबसे बड़ा ग्रह है। इसका द्रव्यमान सौरमंडल के 

अन्य सभी ग्रहों के कुल द्रव्यमान से 2.5 गुना अधिक है। इसमें 

1300 पृथ्वी समा सकती हैं। यह अपनी धुरी पर एक चक्कर

अत्यन्त तीव्र गति से 9 घण्टे 55 मिनट में पूरा करता है। सूर्य की

 परिक्रमा यह लगभग 12 वर्षों में पूरी करता है। वैज्ञानिकों के

 अनुसार यह इतना विशाल ग्रह है कि तारा बन सकता था। 

'वॉयजर 1Ó नामक अंतरिक्षयान से भेजे गए चित्रों से एक 

महत्वपूर्ण जानकारी यह प्राप्त हुई कि शनि की भांति बृहस्पति का

 भी एक छल्ला है जो उसकी सतह से 300,000 किमी. दूरी तक

 फैला है।  वैज्ञानिकों के अनुसार इसके उपग्रह 'यूरोपाÓ की 

बर्फीली सतह के नीचे मौजूद पानी जीवन का पोषक हो सकता है।

हमारे सौरमण्डल में संभवत: सबसे बड़ी संरचना बृहस्पति का

 चुम्बकीयमंडल (रूड्डद्दठ्ठद्गह्लशह्यश्चद्धद्गह्म्द्ग) है। यह 

अंतरिक्ष का वह क्षेत्र है, जहाँ बृहस्पति का चुम्बकीय क्षेत्र स्थित

 है। बृहस्पति के अभी तक खोजे गए 61 उपग्रहों में से 21 उपग्रहों

की खोज 2003 में की गई। इसके चार मुख्य चंद्रमाओं- इयो,

 यूरोपा, गैनीमीड और कैलिस्टो की खोज गैलीलियो ने 1610 में 


की थी।






             *शनि (Saturn)*


शनि सौरमण्डल का छठवाँ एवँ बृहस्पति के पश्चात् सबसे विशाल

 ग्रह है। बृहस्पति की भांति ही शनि का निर्माण हाइड्रोजन,

 हीलियम एवँ अन्य गैसों से हुआ है। सौरमण्डल का दूसरा सबसे

 विशाल ग्रह होने के बावजूद इसका द्रव्यमान पृथ्वी के द्रव्यमान

 का 95 गुना है और घनत्व 0.70 ग्राम प्रति घन सेमी. है। शनि की

 उच्च चक्रण गति (प्रत्येक 10 घण्टे, 12 मिनट में एक) उसे सभी

 ग्रहों में सबसे ज्यादा चपटा बनाते हैं। वॉयजर 1Ó अंतरिक्षयान ने

 शनि के छल्लों की सँख्या 1,000 निर्धारित की थी। लेकिन अब

 इसके छल्लों की सँख्या एक लाख निर्धारित की गई है। इन 

छल्लों का निर्माण बर्फ के कणों से हुआ है। अभी तक शनि के 31

 ज्ञात उपग्रह हैं। इसका सबसे बड़ा उपग्रह 'टाइटनÓ है। यह 

सौरमण्डल का ऐसा अकेला उपग्रह है जिस पर वायुमंडल की 


उपस्थिति है।






           *यूरेनस (uranus)*


यूरेनस की खोज 1781 ई. में सर विलियम हर्शेल ने की थी। 

इसकी सूर्य से माध्य दूरी 286.9 करोड़ किमी. है। यह अपनी धुरी

 पर 970 पर झुका हुआ है और इसके इस अप्रत्याशित झुकाव की

 वजह से ध्रुवीय क्षेत्रों को एक वर्ष के दौरान अधिक सूर्य की किरणें

 मिलती हैं। एक यूरेनस वर्ष 84 पृथ्वी वर्षों के बराबर होता है।

 मीथेन की उपस्थिति की वजह से ग्रह का रंग हल्का हरा है। यह

 एकमात्र ऐसा ग्रह है जो एक ध्रुव से दूसरे ध्रुव तक अपनी 


प्रदक्षिणा कक्षा में लगातार सूर्य के सामने रहता है।






            *नेप्च्यून (neptune)* 


नेप्च्यून, सूर्य से औसतन 2.8 अरब मील की दूरी पर स्थित है 

और 165 वर्षों में सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करता है। नेप्च्यून 

सौरमंडल का आठवाँ ग्रह है। इसके वायुमंडल के मुख्य अवयव 

हाइड्रोजन और हीलियम हैं। वायुमंडल में मीथेन की उपस्थिति की

 वजह से इसका रंग हल्का नीला है। अभी तक नेप्च्यून के 11 

ज्ञात चंद्रमा हैं। ट्राइटन इसका सबसे बड़ा उपग्रह है। ट्राइटन की 

विशेषता है कि यह नेप्च्यून की दिशा के विपरीत परिक्रमण करता

 है। 'वॉयजर 2Ó ने  नेप्च्यून पर कई काले धब्बे पाए थे।इसमें से

 सबसे बड़ा धब्बा पृथ्वी के आकार का है।







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जानकारी है तो जरूर बताइयेगा

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Hello friends 
Mera naam *ashish Kumar* hai . mai koi professional blogger nhi hu par meri soch isase bhi uper hai . or me chahta hu ki aap log brahmand ke  baare me jane .


***Thanks***

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